मुंबई के ट्रैफिक सिग्नल पर फूल बेचने से लेकर अमेरिका में अपना सपना पूरा करने तक का जो सफर सरिता माली की गोदी में खाना बबुआने तय किया है, वह उन लोगों के लिए प्रेरणादायक है, लोग अक्सर अपनी असफलता के लिए परिस्थितियों को दोषी मानते हैं।
* Highlights:-
- • सरिता माली अमेरिका में कर रही है रिसर्च ।
- • ट्रैफिक सिग्नल पर पिता के साथ फूल बेचती थी ।
- • “शिक्षा से कुछ भी हासिल किया जा सकता है” ,
- पिता की स्टिक से मिली आगे बढ़ने की प्रेरणा ।
फिल्मों में तो आपने बहुत से ऐसे किरदारों को देखा होगा, जो बुरे वक्त में हिम्मत से काम लेकर अपने सपने पूरे करते हैं, पर यह एक सच्ची कहानी है। एक ऐसी लड़की की कहानी जिसे किस्मत में कभी मुंबई की ट्रैफिक सिग्नल पर फूल बेचने पर मजबूर कर दिया था, लेकिन बिना अपनी किस्मत पर रोए, अपनी परिस्थितियों को दोषी माने, मुंबई के झोपड़पट्टी में रहने वाली वह लड़की अपनी किस्मत की रेखाओं को बदलना शुरू करती है। वह जेएनयू पहुंचती है । पर सफर अभी खत्म नहीं हुआ था, यूपी के जौनपुर से आई सीधी-सादी लड़की के सपने पूरे होने अभी बाकी थे। उसकी मंजिल अभी दूर थी । जेएनयू में जाने के बाद अमेरिका से उसके लिए फेलोशिप आई और वह अमेरिका के लिए निकल पड़ी और यहां से उसके सपनों की उड़ान शुरू हुई। यह कहानी किसी और की नहीं बल्कि एक रियल हीरो सरिता माली की है।
• कभी गाड़ियों के पीछे तक दौड़ी थी, फूल बेचने के लिए सरिता।
छठी कक्षा में पढ़ने वाली सरिता जिंदगी का संघर्ष तब शुरू हुआ जब उसे अपने पिता के साथ ट्रैफिक सिग्नल पर फूल बेचना शुरू करना पड़ा। कभी-कभी तो उन्हें गाड़ियों के पीछे दौड़ना भी पढ़ता था। सारी फूल बेचने पर ही दिन भर में परिवार बस ₹300 ही कमा पाता था।
आज वही 28 साल की सरिता जोकि जेएनयू रिसर्च स्कॉलर है, अमेरिका में पीएचडी कर रही है। इतना ही नहीं बल्कि मुंबई के घाटकोपर इलाके के पास की झुग्गी में पली-बढ़ी सरिता ने बचपन में अपने लड़की होने पर वह स्किन कलर के कारण भेदभाव की झेला है। गौरतलब है कि इन सब के बावजूद उनके पिता ने कभी साथ नहीं छोड़ा। सरिता के गांव में उनके पिता ने देखा था कि ऊंची जाति के लोग पढ़ाई के बाद बहुत कुछ हासिल कर लेते थे । इसलिए उन्होंने भी ठान लिया था कि वह भी अपनी बेटी को पढ़ाएंगे ।
# ट्यूशन पढ़ाकर बचाएं पैसे।
अपने पिता की खूब पढ़ने की इच्छा को पूरा करने के लिए सरिता ने दसवीं के बाद अपने इलाके के बच्चों को ट्यूशन पढ़ाना शुरू कर दिया । ट्यूशन पढ़ाकर उन्होंने केजे सोमैया कॉलेज ऑफ आर्ट एंड कॉमर्स में दाखिला लिया। उनकी लगन से प्रेरित होकर बड़ी बहन और दो भाइयों ने भी पढ़ाई जारी रखी। भले ही उनके पिता को ग्रेजुएट और पोस्ट ग्रेजुएट में अंतर नहीं समझ आता पर शिक्षा ही सबसे बड़ी ताकत है, यह बात वे जरूर जानते हैं।
फेसबुक पोस्ट में सरिता ने अपने संघर्षों की दास्तां शेयर की है उन्होंने लिखा– मेरा चयन अमेरिका के 2 विश्वविद्यालयों में हुआ है “यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया” और “यूनिवर्सिटी ऑफ वाशिंगटन”…… मैंने यूनिवर्सिटी ऑफ वाशिंगटन को चुना। मुझे इस यूनिवर्सिटी में मेरिट और अकादमिक रिकॉर्ड के आधार पर अमेरिका की सबसे प्रतिष्ठित फेलोशिप में से एक “चांसलर फैलोशिप” दी है ।
भाई की झोपड़पट्टी, जे एन यू, कैलिफोर्निया, चांसलर फैलोशिप, अमेरिका ऑल अब हिंदी साहित्य…… अपने सफर को याद करते हुए सरिता कहती है कि सफर के अंत में हम भावुक हो उठते हैं क्योंकि यह ऐसा सफल होता है जहां मंदिर की चाह से अधिक उसके साथ की चाह अधिक सुकून देती है । उन्होंने कहा यही है मेरी कहानी….. मेरी अपनी कहानी